To, The Enablers
तबस्सुम
कैसी हो?
हम सब यहाँ बिकुल ठीक हैं।आशा है की तुम भी सही सलामत होंगी। आज मैं ये चिट्ठी इसलिए लिख रहि हूँ की तुम्हे बता सकूं की मैं अक्सर तुम्हारे बारे मैं सोचती हूँ। सोचती हूँ अब तुम क्या करती होगी, काम पे जाती हो अब भी? कोई मना तो नहीं करता? सास बच्चे संभाल लेती है तुम्हारे पीछे से? वो तो अब बड़े भी हो गए होंगे न? स्कूल जाते होंगे?
मुझे अब कोलकाता मैं रहते हुए ६-७ साल हो गए हैं। जब चंडीगढ़ से निकले थे तो उम्मीद न थी की इतना समय इस परायी नगरी में निकल जाएगा।
नेत्रा को याद करती हो कभी? वो इस साल १२ की हो गयी है। उसे तो तुम्हारी याद नहीं लेकिन आज भी जब वो ज़िद्द करती है की मैं उसे खाना खिला दूँ और मैं बहुत थक गयी होती हूँ, तो झट से तुम्हारी याद आ जाती है। तुम होती तो मुझे चाय का कप पकड़ा कर उसे प्यार से फुसला के ले जाती और खुद ही खिला देती। कहती, "मेरे पास आओ नेत्रा, माँ को रहने दो। आओ मैंने तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल रखा है।" कितने सारे अंग्रेजी के नए नए शब्द सीख गयीं थी न तुम. कुछ तो तुम्हारे ख़ास बन गए थे। जैसे बॉय, गर्ल, रेफ्रीजिरेटर, टेलीविज़न और स्पेशल जिसे तुम बोलते नहीं थकती थीं ।
याद है नेत्रा के साथ तुमने स्कूल बोलने की कितनी प्रैक्टिस की थी। वह तुम्हारे मुंह से इस्कूल सुन के हंसती और तुम्हे बार बार कहती स्कूल न की इसकूऊऊऊल दीदी।
अब मैं तो काम पर नहीं जाती पर अभी भी कभी कभी जब कंप्यूटर पे ज़्यादा
देर टाइपिंग कर लूँ तो कलाई दुखने लगती है और फिरर तुम्हारी की हुई हलकी हलकी मालिश याद आती है। जानती हो जब मैं ऑफिस से आती थी और तुम बस जाने के लिए निकलने वाली ही होती थी तो कभी कभी बस झूठ ही दर्द का बहाना करके तुमसे पांच मिनट बाज़ू , कंधे और कलाई दबवा लेती थी।आज तुम्हारी मुस्कराहट याद करती हूँ तो लगता है की शायद तुम मेरा झूठ पकड़ लेती थीं पर शायद जानती थी की मुझे पम्पेर करने वाला और कौन है भला। इसीलिए चुपचाप बैग नीचे रख के बिना कुछ कहे बाज़ू, कंधे दबा के दस मिनट लेट निकल जाती. तब कभी सोचा नहीं की कहीं तुम्हारा घर वाला जो रोज़ शाम तुम्हे लेने आता था वो झगड़ा तो नहीं करता इस दस मिनट की देरी के चक्कर में। आज सोचती हूँ तो थोड़ा दुःख होता है। और वो रोजे के ४० दिन जब किसी किसी दिन तुम्हारी हालत साफ़ दिखती थी पर तुम ज़रूर चली आती थी अगर मुझे टूर पे जाना होता था या दफ्तर में कोई और काम रहता. बस एक फ़ोन से समझ जाती थी की मेरा घर आज तुम्हारे बना नहीं चलेगा।
कभी कभी लगता है की जितनी सी भी नौकरी कर पायी, तुम्हारी वजह से कर पायी। जितना काम आज कर पाती हूँ वो भी एक तरह से तुम्हारी ही देन है। तब तुम सब कुछ नहीं संभालती तो मैं कहाँ जा पाती घर से बहार और करियर वुमन होने का आनंद ले पाती और इतना वर्क एक्सपीरियंस इकठ्ठा कर पाती। जो तुम रोज़ अपने बच्चों को छोड़ के नहीं आती तो कौन मेरी नेत्रा को सारा सारा दिन खिलाता-देखता-संभालता? तुम अगर सुबह ४ बजे उठ के, अपने घर से तैयार हो कर अगर मेरे घर ७ बजे नहीं पहुँचती तो कौन मुझे साडी बांधने मैं मदद करता।
थैंक यू तबस्सुम।
तुम्हारी
दीदी
कैसी हो?
हम सब यहाँ बिकुल ठीक हैं।आशा है की तुम भी सही सलामत होंगी। आज मैं ये चिट्ठी इसलिए लिख रहि हूँ की तुम्हे बता सकूं की मैं अक्सर तुम्हारे बारे मैं सोचती हूँ। सोचती हूँ अब तुम क्या करती होगी, काम पे जाती हो अब भी? कोई मना तो नहीं करता? सास बच्चे संभाल लेती है तुम्हारे पीछे से? वो तो अब बड़े भी हो गए होंगे न? स्कूल जाते होंगे?
मुझे अब कोलकाता मैं रहते हुए ६-७ साल हो गए हैं। जब चंडीगढ़ से निकले थे तो उम्मीद न थी की इतना समय इस परायी नगरी में निकल जाएगा।
नेत्रा को याद करती हो कभी? वो इस साल १२ की हो गयी है। उसे तो तुम्हारी याद नहीं लेकिन आज भी जब वो ज़िद्द करती है की मैं उसे खाना खिला दूँ और मैं बहुत थक गयी होती हूँ, तो झट से तुम्हारी याद आ जाती है। तुम होती तो मुझे चाय का कप पकड़ा कर उसे प्यार से फुसला के ले जाती और खुद ही खिला देती। कहती, "मेरे पास आओ नेत्रा, माँ को रहने दो। आओ मैंने तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल रखा है।" कितने सारे अंग्रेजी के नए नए शब्द सीख गयीं थी न तुम. कुछ तो तुम्हारे ख़ास बन गए थे। जैसे बॉय, गर्ल, रेफ्रीजिरेटर, टेलीविज़न और स्पेशल जिसे तुम बोलते नहीं थकती थीं ।
याद है नेत्रा के साथ तुमने स्कूल बोलने की कितनी प्रैक्टिस की थी। वह तुम्हारे मुंह से इस्कूल सुन के हंसती और तुम्हे बार बार कहती स्कूल न की इसकूऊऊऊल दीदी।
अब मैं तो काम पर नहीं जाती पर अभी भी कभी कभी जब कंप्यूटर पे ज़्यादा
देर टाइपिंग कर लूँ तो कलाई दुखने लगती है और फिरर तुम्हारी की हुई हलकी हलकी मालिश याद आती है। जानती हो जब मैं ऑफिस से आती थी और तुम बस जाने के लिए निकलने वाली ही होती थी तो कभी कभी बस झूठ ही दर्द का बहाना करके तुमसे पांच मिनट बाज़ू , कंधे और कलाई दबवा लेती थी।आज तुम्हारी मुस्कराहट याद करती हूँ तो लगता है की शायद तुम मेरा झूठ पकड़ लेती थीं पर शायद जानती थी की मुझे पम्पेर करने वाला और कौन है भला। इसीलिए चुपचाप बैग नीचे रख के बिना कुछ कहे बाज़ू, कंधे दबा के दस मिनट लेट निकल जाती. तब कभी सोचा नहीं की कहीं तुम्हारा घर वाला जो रोज़ शाम तुम्हे लेने आता था वो झगड़ा तो नहीं करता इस दस मिनट की देरी के चक्कर में। आज सोचती हूँ तो थोड़ा दुःख होता है। और वो रोजे के ४० दिन जब किसी किसी दिन तुम्हारी हालत साफ़ दिखती थी पर तुम ज़रूर चली आती थी अगर मुझे टूर पे जाना होता था या दफ्तर में कोई और काम रहता. बस एक फ़ोन से समझ जाती थी की मेरा घर आज तुम्हारे बना नहीं चलेगा।
कभी कभी लगता है की जितनी सी भी नौकरी कर पायी, तुम्हारी वजह से कर पायी। जितना काम आज कर पाती हूँ वो भी एक तरह से तुम्हारी ही देन है। तब तुम सब कुछ नहीं संभालती तो मैं कहाँ जा पाती घर से बहार और करियर वुमन होने का आनंद ले पाती और इतना वर्क एक्सपीरियंस इकठ्ठा कर पाती। जो तुम रोज़ अपने बच्चों को छोड़ के नहीं आती तो कौन मेरी नेत्रा को सारा सारा दिन खिलाता-देखता-संभालता? तुम अगर सुबह ४ बजे उठ के, अपने घर से तैयार हो कर अगर मेरे घर ७ बजे नहीं पहुँचती तो कौन मुझे साडी बांधने मैं मदद करता।
थैंक यू तबस्सुम।
तुम्हारी
दीदी
“This post is a part of ‘The Woman That I Am’ Blog Hop #TheWomanThatIAm organized by Rashi Roy and Manas Mukul #RRxMM. The Event is sponsored by Kraffitti.”
Comments
So glad I read this today.
Mayuri / Sirimiri
दीपिका मिश्रा
वो छोटी छोटी बाते जब वो हमारे इशारो को समझे थे और जब तुमने उसे मन से शुक्रिया कहा था वही इस खूबसूरत रिश्ते को दर्शाता है.
ये रोज के हमारे मददगार हाथो को सिर्फ इसी प्यार की तालश है |
Nidhi Rawal Gautam
Deepika Sharma
Janaki@beyondthefamiliar
Wonderful to read such a heartfelt letter written to your sister.
I am an elder sister and every word you wrote I could easily relate to.
You both are lucky to have each others back in life.
Archana Srivastava
-- rightpurchasing
-Ujjwal Mishra Mywordsmywisdom
God bless you. Keep writing..
Debi :)
@womb2cradlenbeyond
And this is indeed an Ode to Tabasum
How doffi it's to leave our child with someone
And the factor called trust only helps us proceed
Thanks for this extraordinary quill...
Wish Tabasum reads this
Sangya Nagpal
My Lucknow cook aunty, I always refer as my local guardian as she is such a helpful person.And I also make sure to keep in mind that this is extra that she is giving to me other than I pay her for.
The help at home are the lifelines without whom many households cannot survive. You have done a commendable job in picking this as your woman's day's post!
Meena from balconysunrise.wordpress.com
Noor Anand Chawla
- Rashi
#RRxMM #TheWomanThatIAm